मै पहली बार चाय पिया तो यु लगा, के होठ वाबिस तात ए मिठास के , एक चुस्की से मुँह से अमृत चख डाला हो, के जैसे ठंडा कोयला सीने में भड़का हो, के लाख कप बाकि थे और आगाज़ किया हो, शुरू की एक दिन से दो तलक पहुँचा, फिर कुछ मिले दोस्त पीने वाले तो 4 तक पहुँचा, भरा जब मन नही तो 4 से 8 भी कर दी, सुबह उठना तो एक पीना, कही जाना तो एक पीना, किसी से मिलने से पहले तो किसी से मिल कर फिर पीना, कभी नरवस तो एक दो, कभी बेदार तो एक दो, कभी खुशबाश होकर 10 तो कभी दिल टूटने पर 100, कभी घर से निकल कर किसी अनजान गली में , कभी बिस्कुट तो कभी ब्रेड के साथ , घड़ी के काटे बदले एक चाय एक टपरी में, मगर इस जिस्म को धोखा हुआ मालूम न चला, मेरे गुर्दो ने इस शक्कर को इस तरह सोखा, के सांसे थम के चलने लग गयी शाम ओ शहर मेरी, महीनो तक हलक छिलने लगा मगर हर पल, के सुखा पड़ गया मास और लहू जमने लगा हर पल, के दांत पीले हो गए होठ काले पड़ गए, के खून गुब्बारों जैसे मुँह छाले हो गए, प्यास मेरी बढ़ गयी और भूख मेरी घट गयी , नींद को जो आँखों से बांधे वो डोरी कट गयी, उम्मीदों और दुआओ से शिफ़ा की पुरिशे भी की किसी जादू किसी टोने से कुछ हो कोशिश भी की, मगर कुछ न होना था मुझे एक दिन जाना था ।
मैं शायद नींद से उठा हूँ और एक सर्द कमरा है, मेरी आँखों में बेहोशी नही साकेत अँधेरा है, मेरी कलाई की नसों को सुइयों ने चिर डाला है, मेरे सीने में चाकू डाल शायद दिल निकाला है, मेरा लिबास ए जिस्म मेला हो चूका है , जाते जाते मेला पैन दूर करना है, बस ऐसे अलविदा कह दो मेरी इन आखरी साँसों को, एक आखरी चाय का तोहफा दो , मै आखरी बार चाय पिया तो कुछ हुआ ऐसा ।